धनक बिखेर रहे अब्र क्या फ़ज़ाऐं हैं
फलक पे झूम रहीं सांबली घटाऐं हैं.
गुलो बहार बगीचे हुये दिवाने से
अजीब कैफ मे डूबी हुई हवाऐं हैं .
हुई ज़मीन पे बारिश हुआ ज़माना खुश
खुशी से नाच रहीं आज सब दिशाऐं हैं .
चले भी आइए हम से रहा नही जाता
हसीन यार तुम्हारी सभी अदाऐं हैं.
तुमी ने इश्क सिखाया तुमी हुये गाफिल
कहो न यार कहाँ हुस्न की वफ़ाऐं हैं.
हमे खबर न हुई और हो गये बेदिल
बताइऐ न हमे क्या हुईं खताऐं हैं .
सितम न कीजिए बेचैन हो रहीं साँसे
हुज़ुर आइए माह्क कि इल्तिजाऐं हैं.
Dr. Ajmal khan "maahk" .
धनक- छटा, अब्र-बादल, फलक- आसमान
कैफ- खुशी, गाफिल- लापरवाह, इल्तिजा- निवेदन
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आदाब, इस बार आप सब की खिदमत मे पेश है लखनवी अंदाज़ की एक तरही गज़ल जो कि "सुबीर सबाद सेवा " के मौसमी तरही मुशायरे मे शामिल हुई थी,उम्मीद है आप सब को पसंद आयेगी.
ReplyDeleteAjmal khan .
गुलो बहार बगीचे हुये दिवाने से
ReplyDeleteअजीब कैफ मे डूबी हुई हवाऐं हैं .
हुई ज़मीन पे बारिश हुआ ज़माना खुश
खुशी से नाच रहीं आज सब दिशाऐं हैं .
बहुत उम्दा ।
धनक बिखेर रहे अब्र क्या फ़ज़ाऐं हैं
ReplyDeleteफलक पे झूम रहीं सांबली घटाऐं हैं.
-खूब निभाया..बेहतरीन!
हुई ज़मीन पे बारिश हुआ ज़माना खुश
ReplyDeleteखुशी से नाच रहीं आज सब दिशाऐं हैं .
खुबसूरत शेर मुवारक हो
माहक साहब
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत दिन बाद मुलाकात हो रही है ।
अच्छा निभाया है आपने तरही को । पढ़कर मज़ा आ गया ।
धनक बिखेर रहे अब्र क्या फ़ज़ाएं हैं
फ़लक़ पे झूम रहीं सांवली घटाएं हैं
शानदार मत्ला है हुज़ूर !
तुम्हीं ने इश्क़ सिखाया तुम्हीं हुए ग़ाफ़िल
कहो न यार कहां हुस्न की वफ़ाएं हैं
वाह वाह !
जवाब नहीं आपका …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत खूबसूरत गज़ल ..
ReplyDeleteबड़ी प्यारी सी ग़ज़ल है..सावन की एक घटा सी मनमोहक...
ReplyDeleteमंगलवार 31 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
धनक बिखेर रहे अब्र क्या फ़ज़ाऐं हैं
ReplyDeleteफलक पे झूम रहीं सांबली घटाऐं हैं.
गुलो बहार बगीचे हुये दिवाने से
अजीब कैफ मे डूबी हुई हवाऐं हैं .
हुई ज़मीन पे बारिश हुआ ज़माना खुश
खुशी से नाच रहीं आज सब दिशाऐं हैं .
bahut hi sundar gazal, tarh ko kya khoob nibhaya hai aap ne. wah wah....
तुमी ने इश्क सिखाया तुमी हुये गाफिल
ReplyDeleteकहो न यार कहाँ हुस्न की वफ़ाऐं हैं.
हमे खबर न हुई और हो गये बेदिल
बताइऐ न हमे क्या हुईं खताऐं हैं .
सितम न कीजिए बेचैन हो रहीं साँसे
हुज़ुर आइए माह्क कि इल्तिजाऐं हैं.
सुंदर भाव और विरह की अनूठी पेशक़श,
गज़ल को बहुत अछे से बांधा है तरह मे ,
प्रक़्रति का भी मनोहारी प्रश्तुतिकरन.
धनक बिखेर रहे अब्र क्या फ़ज़ाएं हैं
फ़लक़ पे झूम रहीं सांवली घटाएं हैं
वाह वाह.....
मौसम का कमाल है गज़ल बेमिसाल है...
ReplyDeletesundar rachna , bhai waah..
ReplyDeletebahut bahut sundar ,
ReplyDeleteaap jaise logo ne hi hindi ko aage bada rahe hain
aap ka shukriya
prashnshniya rachana bhavnao le labarej
ReplyDeleteI am extremely impressed along with your writing abilities, Thanks for this great share.
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