Wednesday, October 26, 2011

लो आ गई दीपावली















रौशन  ज़मी,        पर कहकशां,       जज़्बों पे है,     दीवानगी
हर सिम्त से,      इक शोर है,       लो आ गई,      दीपावली

है ऐ  दुआ,       लब पर मिरे,      बदले न ऐ,     मंज़र कभी
जलते  रहें,       दीपक  सदा,         क़ाइम  रहे,     ये रौशनी

है  रोज़ कब,        होती  यहाँ,         ईदे  चरागाँ   यार  अब
उठ कर मिलो,     हम से गले,      छोडो ज़रा,        बेरुखी

कहते सभी,       हैं डाक्टर,        मत खाइये,      है  ऐ मुज़िर
इतनी  मिठाई  देख  कर,           काबू  रखें,       कैसे  अजी


ऐ मालिके,         दोनों जहां,      चमके मिरा,       हिन्दोसिता
बढ़ता रहे ,          फूले फले,       बिखरी रहे ,    हर सू ख़ुशी

दीपक  अजी,       शेर  हैं,       याराने   महफ़िल   लीजिये
अजमल  ने  भेजी  नज्र  है,      क़ाइम   रहे,       ये  दोस्ती


ज़मी-ज़मीन(धरती),   कहकशां-आकाश गंगा,    जज़्बों पे-भावनाओ  पे, 
 हर सिम्त से- सभी दिशाओ से,    मंज़र-द्र्श्य,       ईदे  चरागाँ - दीपो का त्योहार,       मुज़िर - नुक़्सानदेह,
हर सू-सभी जगह,   याराने  महफ़िल-सभा मे उपस्थित सभी लोग,    
   
 नज्र- तोह्फा,  क़ाइम   रहे- हमेशा स्थिर रहे,



Thursday, September 2, 2010

ग़ज़ल-जन्माष्टमी......

है योमे अष्टमी दिल पर खुशी सी छाई है

किशन के जन्म की सब को बहुत बधाई है



हुआ है मुज़्तरिब बातिल उदास रह्ता है

कज़ा के खौफ ने दिल मे जगह बनाई है



छिटक के गिर गयी ज़ंजीर खुल गये ताले

पिता की गोद में जल्वा किशन कन्हाई है



योमे- दिन  ,  अष्टमी- आठवीं  (योमे अष्टमी -   जन्माष्टमी)   ,
मुज़्तरिब- बेचैन ,       बातिल- जो सत्य न हो, झूठ, मिथ्या,
नियम-विरुद्ध,निकम्मा  (यहा पर कंस के लिये या उस्के कार्य के अर्थ में)
क़ज़ा- म्रत्यु ,      खौफ- डर,      जल्वा- विराजमान

Wednesday, August 25, 2010

धनक बिखेर रहे अब्र ........

धनक   बिखेर   रहे  अब्र   क्या  फ़ज़ाऐं  हैं

फलक   पे   झूम  रहीं   सांबली  घटाऐं  हैं.


गुलो    बहार    बगीचे    हुये  दिवाने  से

अजीब   कैफ   मे    डूबी   हुई  हवाऐं  हैं .


हुई  ज़मीन  पे  बारिश  हुआ  ज़माना  खुश

खुशी  से  नाच  रहीं  आज  सब  दिशाऐं हैं .


चले   भी  आइए  हम  से  रहा  नही  जाता

हसीन  यार   तुम्हारी   सभी   अदाऐं   हैं.


तुमी  ने  इश्क  सिखाया  तुमी  हुये  गाफिल

कहो  न  यार  कहाँ   हुस्न  की   वफ़ाऐं  हैं.


हमे   खबर  न   हुई  और  हो  गये  बेदिल

बताइऐ   न    हमे   क्या   हुईं   खताऐं हैं .


सितम   न   कीजिए  बेचैन  हो   रहीं   साँसे

हुज़ुर   आइए   माह्क   कि   इल्तिजाऐं   हैं.

                       Dr. Ajmal khan "maahk" .

धनक- छटा,  अब्र-बादल, फलक- आसमान 
कैफ- खुशी,  गाफिल- लापरवाह,  इल्तिजा- निवेदन

Saturday, July 3, 2010

गज़ल - दाता जल दे








दाता   जल   दे


थोडा   कल   दे.


क्यों है  गरमी

कुछ तो हल दे .


जलता  तन  है

जल  शीतल  दे.


बरसें   बादल

तू वो पल दे.


है   तू   पालक

तो फिर बल दे.


तुझ   को  पूजा

तू अब फल दे .


दे   दे   अब  ही

या   तू   कल दे .


महके    धरती

जीवन  चल   दे .




कल-चैन(आराम) ,  पालक- पालनेवाला(GOD)

अब-आज या अभी,      कल- Tomorrow

Saturday, June 19, 2010

पिता

पिता वो हैं जो जीवन


राह पे चलना सिखाते हैं ।

डगर कैसी भी हो हर

हाल में बढ़ना सिखाते हैं ।

जो हम गिरते संभलते हैं

वो बढ़कर थाम लेते हैं ।

हमारी हार में भी धैर्य

से वो काम लेते हैं ।

कभी पलकों में रखते हैं

कभी दिल में बसाते हैं ।

हमारे अनगिनत सपने

वो आँखों में सजाते हैं ।

हमारी हर ख़ुशी उनके

हृदय में जोश देती है ।

हमारी छोटी सी गलती

भी उनको होश देती है ।

वो तजते हैं सभी खुशियाँ

हमारे ज्ञान की खातिर ।

वो हम को डांटते केवल

हमारे मान की खातिर ।

हमारे कच्चे मन को

दुनिया के दुःख से बचाते हैं ।

हमारे साथ हँसते हैं

हमारे साथ गाते हैं ।

वो बुधि दे हमें दाता

सदा हम मान रख पांये ।

समय कैसा भी हो

हर हाल में हम ध्यान रख पांये ।

बड़ा मज़बूत और सच्चा

सहारा हम बने उनका ।

हर एक मुश्किल में राहत

का किनारा हम बने उनका ।

बड़े होकर के पापा का

करें सिर गर्व से ऊँचा ।

रखें अपने को ऊँचा और

अपने घर को हम ऊँचा ।

यही “माहक” की श्रद्धा है

यही उसका समर्पण है ।

Tuesday, June 8, 2010

गज़ल- रंग- ए - दुनिया

देख  बाग़-ए- बहार   है दुनिया

चमचमाता निखार है दुनिया ।


कौन जाने किसे मिले क्या क्या

एक खुला सा बज़ार है दुनिया ।


जेब में नोट और दिल खाली

वाह क्या माल दार है दुनिया ।


क्यों ज़रा भी सुकूं नहीं दिल में

देख तो लालाज़ार है दुनिया ।


शान   वाले   कहाँ   गये  देखो

अब न वो शानदार है दुनिया ।


कुछ न पूंछो कि हो गया है क्या

हो गई क्यों शिकार है दुनिया ।


भागती   जा   रही   कहाँ  देखो

रेत पर क्यों सवार है दुनिया ।


दिल दुखाते कभी कभी अपने

रो रही   ज़ार ज़ार  है दुनिया ।


क्यों बिला वजह  बन गये दुश्मन

दामन- ए- दाग़  दार  है   दुनिया ।


जो गुज़र कर चला गया पीछे

वक़्त की याद ग़ार है दुनिया ।


हम कभी बोलते नहीं "माहक"

पूछती  बार   बार   है   दुनिया ।