धनक बिखेर रहे अब्र क्या फ़ज़ाऐं हैं
फलक पे झूम रहीं सांबली घटाऐं हैं.
गुलो बहार बगीचे हुये दिवाने से
अजीब कैफ मे डूबी हुई हवाऐं हैं .
हुई ज़मीन पे बारिश हुआ ज़माना खुश
खुशी से नाच रहीं आज सब दिशाऐं हैं .
चले भी आइए हम से रहा नही जाता
हसीन यार तुम्हारी सभी अदाऐं हैं.
तुमी ने इश्क सिखाया तुमी हुये गाफिल
कहो न यार कहाँ हुस्न की वफ़ाऐं हैं.
हमे खबर न हुई और हो गये बेदिल
बताइऐ न हमे क्या हुईं खताऐं हैं .
सितम न कीजिए बेचैन हो रहीं साँसे
हुज़ुर आइए माह्क कि इल्तिजाऐं हैं.
Dr. Ajmal khan "maahk" .
धनक- छटा, अब्र-बादल, फलक- आसमान
कैफ- खुशी, गाफिल- लापरवाह, इल्तिजा- निवेदन
Wednesday, August 25, 2010
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