रौशन ज़मी, पर कहकशां, जज़्बों पे है, दीवानगी
हर सिम्त से, इक शोर है, लो आ गई, दीपावली ।
है ऐ दुआ, लब पर मिरे, बदले न ऐ, मंज़र कभी
जलते रहें, दीपक सदा, क़ाइम रहे, ये रौशनी ।
है रोज़ कब, होती यहाँ, ईदे चरागाँ यार अब
उठ कर मिलो, हम से गले, छोडो ज़रा, ऐ बेरुखी ।
कहते सभी, हैं डाक्टर, मत खाइये, है ऐ मुज़िर
इतनी मिठाई देख कर, काबू रखें, कैसे अजी ।
ऐ मालिके, दोनों जहां, चमके मिरा, हिन्दोसिता
बढ़ता रहे , फूले फले, बिखरी रहे , हर सू ख़ुशी।
दीपक अजी, ऐ शेर हैं, याराने महफ़िल लीजिये
“अजमल” ने भेजी नज्र है, क़ाइम रहे, ये दोस्ती।
ज़मी-ज़मीन(धरती), कहकशां-आकाश गंगा, जज़्बों पे-भावनाओ पे,
हर सिम्त से- सभी दिशाओ से, मंज़र-द्र्श्य, ईदे चरागाँ - दीपो का त्योहार, मुज़िर - नुक़्सानदेह,
नज्र- तोह्फा, क़ाइम रहे- हमेशा स्थिर रहे,
हर सू-सभी जगह, याराने महफ़िल-सभा मे उपस्थित सभी लोग,
(ये गज़ल "सुबीर सम्वाद सेवा" के दीपावली के, तरही मुशायरे के लिये लिखी गई है और ये मुशायरे मे शामिल भी है.)
ReplyDeleteआप सभी को दीपावली की बहुत बहुत हार्दिक बधाईया और शुभ कामनाये.................
प्रिय बंधुवर अजमल खान जी
ReplyDeleteनमस्कार !
अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई !
ऐ मालिके,दोनों जहां , चमके मिरा,हिन्दोसिता
बढ़ता रहे,फूले फले,बिखरी रहे,हर सू ख़ुशी।
हासिले-ग़ज़ल शे'र है , वाह ! क्या कहने !
आपको और परिवारजनों को दीवाली की हार्दिक मंग़लकामनाएं !
सरस्वती आशीष दें , गणपति दें वरदान !
लक्ष्मी बरसाए कृपा , बढ़े आपका मान !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुन्दर रचना है!
ReplyDelete--
प्रेम से करना "गजानन-लक्ष्मी" आराधना।
आज होनी चाहिए "माँ शारदे" की साधना।।
अपने मन में इक दिया नन्हा जलाना ज्ञान का।
उर से सारा तम हटाना, आज सब अज्ञान का।।
आप खुशियों से धरा को जगमगाएँ!
दीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!
बेहतरीन रचना, आपको परिवार एवम स्नेहीजनों सहित दीपावली की बधाई व घणी रामराम.
ReplyDeleteरामराम
बहोत ही सुंदर पोस्ट.............
ReplyDeleteआपको भी दीपावली की शुभकामनाएँ
ऐ मालिके, दोनों जहां, चमके मिरा, हिन्दोसिता
ReplyDeleteबढ़ता रहे , फूले फले, बिखरी रहे , हर सू ख़ुशी
bahut khoob !
aap ki duaon men hamaree duaaen bhi shamil hain
अजमल जी सुबीर संवाद जी के दिए मिसरे पे आपने भी अच्छी ग़ज़ल लिखी .....
ReplyDeleteख़ास कर ये शेर अच्छा लगा ...
ऐ मालिके,दोनों जहां , चमके मिरा,हिन्दोसिता
बढ़ता रहे,फूले फले,बिखरी रहे,हर सू ख़ुशी।
बधाई ....!!
सराहनीय लेखन........
ReplyDelete+++++++++++++++++++
चिठ्ठाकारी के लिए, मुझे आप पर गर्व।
मंगलमय हो आपको, सदा ज्योति का पर्व॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
है ऐ दुआ, लब पर मिरे, बदले न ऐ, मंज़र कभी
ReplyDeleteजलते रहें, दीपक सदा, क़ाइम रहे, ये रौशनी ।
bahut sundar gazal hai,waah kya bhav hai.
saare sher achche lage.!!!!!!!!
happy diwali!!!!!!!1
अजमल साब,
ReplyDeleteआदाब!
इन्श'अल्लाह!
आशीष
---
पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!
ऐ मालिके,दोनों जहां , चमके मिरा,हिन्दोसिता
ReplyDeleteबढ़ता रहे,फूले फले,बिखरी रहे,हर सू ख़ुशी।
और ये भी
है ऐ दुआ, लब पर मिरे, बदले न ऐ, मंज़र कभी
जलते रहें, दीपक सदा, क़ाइम रहे, ये रौशनी ।
कमाल के शेर हैं । वैसे बहुत सुंदर गज़ल ।
bahut hi sundar rachna. shubkamnaye
ReplyDeleteअजमल साब आपकी यह ग़ज़ल मुशायरे मे ही पढ़ी थी.और गज़ल किसी खूबसूरत गुलदस्ते सी लगी थी..जिसका हर फूल अपनी अलग छटा और खुशबू बेखरता नजर आता हो..ढेर सारे रंग एक साथ इसमे समा कर जैसे एकसार हो गये हों..खुशी का रंग, हँसी का रंग, दुआ का रंग, प्यार का रंग..सब. खासकर मिसरों मे ’अजी’, ’ऎ’, ’यार’ जैसे संबोधन देने से एक खास इन्फ़ार्मल सा अहसास आ जाता है..और भी खूबसूरत लगा.और मुझे तो यह शेर पढ़ कर खास ही मजा आया
ReplyDeleteकहते सभी, हैं डाक्टर,मत खाइये, है ऐ मुज़िर
इतनी मिठाई देख कर,काबू रखें, कैसे अजी ।
सच त्योहारों का मजा जी को काबू मे रखने मे नही बल्कि खोलने मे ही है..
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आप ने.
ReplyDeleteकिसी एक की क्या तारीफ़ की जाए .मुझे तो हर शेर खास लगा.
बहुत उम्दा .
bahut achhi hai aap ki gazal.
ReplyDeleteab nayi post lagaiye deewali to kab ki beet gayii.
ऐ मालिक ए दोनों जहां , चमके मेरा हिन्दोस्ताँ
ReplyDeleteबढ़ता रहे, फूले-फले, बिखरी रहे हर सू ख़ुशी
बहुत ही शानदार
और
कामयाब ग़ज़ल .... वाह !!
nice blog.....great
ReplyDeleteआपको गणतंत्र दिवस की बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteवन्दे मातरम्
अजमल भाई, इस शमा को जलाए रखें।
ReplyDelete---------
ब्लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।
Gazal to shaandaar haihi...haath kangan ko aarasi kaisi?
ReplyDeleteLekin bade din hue aapne aur kuchh likha nahee blog pe? Aisa kyon?
बहुत ही उम्दा गजल है - आभार
ReplyDeleteakashsingh307.blogpot.com
बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
ReplyDeleteयहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके.,
मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.
व्यस्तता के कारण देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् और आशा करता हु आप मुझे इसी तरह प्रोत्सन करते रहेगे
दिनेश पारीक
nice blog .
ReplyDeleteबहुत अच्छी गजल .बधाइयाँ ....
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी आए
ReplyDelete