रौशन ज़मी, पर कहकशां, जज़्बों पे है, दीवानगी
हर सिम्त से, इक शोर है, लो आ गई, दीपावली ।
है ऐ दुआ, लब पर मिरे, बदले न ऐ, मंज़र कभी
जलते रहें, दीपक सदा, क़ाइम रहे, ये रौशनी ।
है रोज़ कब, होती यहाँ, ईदे चरागाँ यार अब
उठ कर मिलो, हम से गले, छोडो ज़रा, ऐ बेरुखी ।
कहते सभी, हैं डाक्टर, मत खाइये, है ऐ मुज़िर
इतनी मिठाई देख कर, काबू रखें, कैसे अजी ।
ऐ मालिके, दोनों जहां, चमके मिरा, हिन्दोसिता
बढ़ता रहे , फूले फले, बिखरी रहे , हर सू ख़ुशी।
दीपक अजी, ऐ शेर हैं, याराने महफ़िल लीजिये
“अजमल” ने भेजी नज्र है, क़ाइम रहे, ये दोस्ती।
ज़मी-ज़मीन(धरती), कहकशां-आकाश गंगा, जज़्बों पे-भावनाओ पे,
हर सिम्त से- सभी दिशाओ से, मंज़र-द्र्श्य, ईदे चरागाँ - दीपो का त्योहार, मुज़िर - नुक़्सानदेह,
नज्र- तोह्फा, क़ाइम रहे- हमेशा स्थिर रहे,
हर सू-सभी जगह, याराने महफ़िल-सभा मे उपस्थित सभी लोग,