देख बाग़-ए- बहार है दुनिया
चमचमाता निखार है दुनिया ।
कौन जाने किसे मिले क्या क्या
एक खुला सा बज़ार है दुनिया ।
जेब में नोट और दिल खाली
वाह क्या माल दार है दुनिया ।
क्यों ज़रा भी सुकूं नहीं दिल में
देख तो लालाज़ार है दुनिया ।
शान वाले कहाँ गये देखो
अब न वो शानदार है दुनिया ।
कुछ न पूंछो कि हो गया है क्या
हो गई क्यों शिकार है दुनिया ।
भागती जा रही कहाँ देखो
रेत पर क्यों सवार है दुनिया ।
दिल दुखाते कभी कभी अपने
रो रही ज़ार ज़ार है दुनिया ।
क्यों बिला वजह बन गये दुश्मन
दामन- ए- दाग़ दार है दुनिया ।
जो गुज़र कर चला गया पीछे
वक़्त की याद ग़ार है दुनिया ।
हम कभी बोलते नहीं "माहक"
पूछती बार बार है दुनिया ।
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bahut khoob. ati sunder
ReplyDeleteजेब में नोट और दिल खाली
ReplyDeleteवाह क्या माल दार है दुनिया ।
जो गुज़र कर चला गया पीछे
वक़्त की याद ग़ार है दुनिया ।
भागती जा रही कहाँ देखो
रेत पर क्यों सवार है दुनिया ।
kya baat kya baat hai.....
ye sher mujhe kafii achhe lage .
badhiya gazal ,badhiya gazal......
क्या बात है ! उम्दा शेर ... उम्दा ग़ज़ल !!
ReplyDeleteअजमल हुसैन खान "माहक" साहब
ReplyDeleteख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़बूल फ़रमाएं ।
"भागती जा रही कहाँ देखो
रेत पर क्यों सवार है दुनिया ।"
ज़रूर आपने रेल कहा होगा ,
छपने की ग़लती सुधारलें ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
कुछ न पूंछो कि हो गया है क्या
ReplyDeleteहो गई क्यों शिकार है दुनिया ।
बहुत ख़ूब!
वाह!
अजमल भाई आज आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ और यहाँ आ कर दिल बाग़ बाग़ हो गया...यहाँ मुझे एक मुकम्मल ग़ज़ल पढने को मिली...सारे के सारे शेर बहुत ख़ूबसूरती से कहे हैं आपने...छोटी बहर को बहुत सलीके से निभाया है आपने...आपके इस फन की मैं तहे दिल से दाद देता हूँ...मुबारकबाद कबूल हो..
ReplyDeleteअगर बुरा ना मानें तो एक बात कहना चाहता हूँ, दो मिसरों के दरमियाँ जो जगह खाली है वो अखरती है, शायद ये टाइपिंग की वजह से है...इसे कम कर लें तो शेर पढने में आसानी होगी...
आपकी सभी पुरानी पोस्ट्स भी पढ़ डाली हैं और दिल ही दिल में उनके लिए भी आपको ढेरों दाद दे डालीं हैं...लिखते रहिये...
नीरज
गज़ल बहुत ही खूबसूरत और लाजवाब है,
ReplyDeleteएक नया पन का अहसास है .......
क्यों ज़रा भी सुकूं नहीं दिल में
देख तो लालाज़ार है दुनिया ।
क्यों बिला वजह बन गये दुश्मन
दामन- ए- दाग़ दार है दुनिया ।
जो गुज़र कर चला गया पीछे
वक़्त की याद ग़ार है दुनिया ।
ये है मेरी पसंद के शेर.
मुबारकबाद क़बूल फ़रमाएं ।..............
मुझे लगता है कि पहले नहीं आया यहाँ। अब आता रहूँगा, नए अन्दाज़, नए तौर और नई बातें सीखने के लिए - मार्फ़त ग़ज़ल।
ReplyDeleteबहुत जानदार सोच है भाई, आभार।
urdu shbdon par pakad kamaal ki hai..rachna bhi !!
ReplyDeletekya kahoon main aap ki gazal lajawaab hai
ReplyDeletebadi sadgii se apni baat kahee magar badi mazbooti se.
nice rachna..........
आप आने वाले समय में और भी शानदार लिखेंगे इसकी पूरी संभावना बताती है आपकी रचना।
ReplyDeletenice post,keep it up.........
ReplyDeleteजनाब , adwat ji,udan tashtari ji, inteha ji ,
ReplyDeleteaacharya ji, amitaabh meet ji, raajendra swarnkaar ji ishmat ji t. sahab, s..m ji, parul ji, sameer ji , raj kumaar soni ji ,himaanshu mohan ji, neeraj goswamii hi,aur shekhar kumawat ji , आप सब को गज़ल पसन्द आई इससे बडी बात मेरे लिये और क्या होगी .आप की आमद और और इज़्हारे ख्याल के लिये मैं तहेदिल से आप सब का शुक़्र्गुज़ार हूँ.आप सब की राय ही तो क़लम को नई परवाज़ देती है. उम्मीद है कि आप सब अपना प्यार बनाये रखेगे.
राजेंद्र भाई वोह "रेल" नही "रेत" ही है और अनिशचित्ता का भाव है उसमे. आप ने मुझे सलाह दी आप का बहुत बहुत शुक़्रिया और आगे भी अगर आप को कोई कमी लगे तो मुझे बता दिजियेगा .
एक बार फिर से मैं आप सभी का शुक़्रिया अदा करता हूँ
फक़त आप का
माहक
भागती जा रही कहाँ देखो
ReplyDeleteरेत पर क्यों सवार है दुनिया ।
दिल दुखाते कभी कभी अपने
रो रही ज़ार ज़ार है दुनिया।
बहुत लाजवाब ग़ज़ल... और रेत का प्रयोग बखूबी किया है....
मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया
MAIKYA AJMAL BHAI,
ReplyDeleteKYA BADHIYA ISTEMAAL KARTE HAIN AAP SYAAHEE!
KUBOOL KARE MERI BHI WAH-WAHI!
ZINDAGI JE SAFAR MEIN, MAIN HOON MUHABBAT KA RAAHI,
ASHISH:)
JANIYE, KYUN HOTA BAADAL BANJAARA.....?
MAAF KARIYE,
ReplyDelete'ZINDAGI JE' NAHIN 'ZINDAGI KE' PADHIYE!
बहुत सुंदर और प्रभावशाली
ReplyDeleteसुंदर रचना के लिए बधाई
वाह! ज़नाब, वाह ! इस गज़ल को पढ़कर तो हम आपके मुरीद हो गये. लगता है कुछ सीखने के लिए इस विधा में आपकी शागिर्दी करनी पड़ेगी.
ReplyDeleteछोटी बहर में इतनी खूबसूरत और मुकम्मल गज़ल पढ़कर दिल बाग-बाग हो गया.
जेब में नोट और दिल खाली
वाह क्या माल दार है दुनिया ।
..कितनी मासूमियत से आपने कटाक्ष किया है कि क्या कहें. वाह!
'मक्ते' में पूंछती खल रहा है ..पूछती ही सही होता..क्या ख्याल है ?
wahwa.....achhi gazal kahi hai aapne...Blogwood me Swagat hai....
ReplyDeleteब्लागर भी बड़ा अच्छा,
ReplyDeleteख़बरिया भी बड़ा अच्छा।
"माहक" का देखने का
नजरिया है बड़ा अच्छा॥
अच्छी प्रस्तुति हेतु.....बधाई।
सद्भावी- डॉ० डंडा लखनवी
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achhi lagi gazal;great.
ReplyDeleteइस नज़र को किसी की नज़र न लगे.. बहुत उम्दा ग़ज़ल है..
ReplyDeleteमंगलवार 15- 06- 2010 को आपकी रचना... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
रचना का हरेक शेर क़ाबिले तारीफ है!
ReplyDeleteभागती जा रही कहाँ देखो
ReplyDeleteरेत पर क्यों सवार है दुनिया ।
बहुत दमदार रचना
मुकम्मल ग़ज़ल ... ग़ज़ब के शेर निकाले हैं आपने ... लाजवाब ...
ReplyDeleteदिल दुखाते कभी कभी अपने..रो रही ज़ार ज़ार है दुनिया .......बहुत सुन्दर
ReplyDeletePahli baar aayi aur lutf utha rahi hun!Ab to follower ban gayi!
ReplyDeletenice gazal, kafii practical bhii.
ReplyDeleteशुक्रिया
ReplyDeleteआपकी नज़र और नज़रिया पसंद आया तो आपका क़लाम देखने गयी .वहां इसी का उर्दू में तर्जुमा दिखा तो और भी अच्छा लगा क्योंकि उर्दू तो उर्दू है.
लता हया जी,शहीन जी,के.शामा जी,पवन धीमान जी, दिगम्वर नासवा जी,वर्मा जी,मौदगिल जी,आशीस जी, आदेश पंकज जी, अबयज खान साह्ब, के.खान जी,संगीता स्वरूप जी, मयंक जी,ड्डा लखनवी जी,और बेचैन आत्मा जी.
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत शुक़्रिया की आप लोग मेरे ब्लोग पर तशरीफ लाये.
भई इसका शुमार आपकी सबसे खूबसूरत ग़ज़लों मे किया जाना चाहिये...भावों की गहराई अशआरों की खूबसूरती से मिल कर निखर आती है..कोई एक शे’र चुन पाना बहुत मुश्किल का काम है.. सो देखें तो कुछ शेर जैसे..
ReplyDeleteकौन जाने किसे मिले क्या क्या
एक खुला सा बज़ार है दुनिया ।
दुनिया के बारे मे खालिस हकीकतबयानी है..खुला सा बजार होना!!
जेब में नोट और दिल खाली
वाह क्या माल दार है दुनिया ।
क्यों ज़रा भी सुकूं नहीं दिल में
देख तो लालाज़ार है दुनिया ।
..दोनो शेर आपस मे जुड़ के और ज्यादा तल्ख और गहरे हो जाते हैं..
शान वाले कहाँ गये देखो
अब न वो शानदार है दुनिया ।
..यह बात पहले भी कई बार कही जाती रही है..मगर फिर भी शेर की खूबसूरती और इसका मैसेज कहीं भी कम नही होता..और न इसमे छुपी हकीकत..
कुछ न पूंछो कि हो गया है क्या
हो गई क्यों शिकार है दुनिया ।
..दुनिया को अक्सर शिकारी के तौर पे देखा जाता है..मगर यहाँ पर दुनिया का दूसरा रूप सामने आता है..एक निरीह, वल्नरेबल और खुद के झूठों की शिकार..
भागती जा रही कहाँ देखो
रेत पर क्यों सवार है दुनिया ।
..शेर एक ’वेक-अप-काल’ सा लगता है..जबर्दस्त!!
जो गुज़र कर चला गया पीछे
वक़्त की याद ग़ार है दुनिया ।
..इस शेर के लिये एक ही लफ़्ज़ है..अद्भुत!!
हम कभी बोलते नहीं "माहक"
पूछती बार बार है दुनिया ।
आजकल की तमाम बेतखल्लुसी ग़ज़लों मे मक़ते की इंटेंसिटी मे फ़र्क आता रहा है..मगर यह शेर ग़ालिब साब के तमाम मक़तों की याद दिलाता है..
कुल मिला कर एक बेहद उम्दा और बार-बार पढ़ी जाने वाली ग़ज़ल के लिये बधाई..जिसमे डूब कर ही असली स्वाद मिलता है...